फिर भी जब कोविड-19 संकट का कहर टूटा, ठीक यही हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका ने ईरान,क्यूबा, वेनेज़ुएला, बल्कि यूँ कहें कि वैश्विक दक्षिण के और 30 देशों के लोगों की जिंदगियों को बंधक बना लिया जो यूएस प्रतिबंधों की मार झेल रहे हैं - आदेश था " घुटने टेको या मरो"।
एकदम शुरुआत में ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ईरान को भेजे गए टेस्टिंग किट रोक लिए गए। यूएस प्रतिबंधों ने अधिकांश शिपमेंट और वित्तीय चैनलों को बाधित किया, जिसके चलते पेंडेमिक की समय से रोकथाम में विलंब हुआ।
तकनीकी रूप से मेडिकल सामान प्रतिबंधों से मुक्त हैं, मगर संस्थाओं और कंपनियों को वाशिंगटन द्वारा ईरान के साथ व्यापार करने के ख़िलाफ़ धमकाया जाता है। इसने ईरान के लिए पेंडेमिक की शुरुआत से ही मरीजों और स्वास्थ्य कर्मियों की जीवन रक्षा के लिए टेस्टिंग किट और सुरक्षा वस्त्र (प्रोटेक्टिव गियर) खरीद पाना लगभग असंभव बना दिया। इसी तरह, क्यूबा भी अपनी इंटेंसिव केयर यूनिटों (आईसीयू) के लिए वेंटिलेटर अथवा यहाँ तक कि विद्यमान मशीनों के लिए स्पेयर पार्ट्स तक नहीं खरीद पाया क्योंकि ये आपूर्तियाँ एक अमेरिकी कंपनी से खरीदी गई थीं।
यह कोई संयोग, अपवाद, या दुर्घटनावश नहीं हुआ है। देखें कि वाशिंगटन में इंस्टीट्यूट फ़ॉर पॉलिसी स्टडीज के फिलिस बेनिस आर्थिक प्रतिबंधों को किस तरह से परिभाषित करते हैं : [वे] लोगों का जीवन असहनीय बना देने के लिए ही डिज़ाइन किए गए हैं। ईरान में, वेनेजुएला में, और उसके अलावा भी - यूएस प्रतिबंधों का लक्ष्य - बिल्कुल सटीक रूप से - आम लोगों के जीवन को नष्ट कर देना है, इस आशा में कि वे वाशिंगटन द्वारा वांक्षित सत्ता परिवर्तन के लिए उठ खड़े होंगे।"
प्रतिबंध (सैंक्शन)अर्थव्यवस्थाओं को पंगु बना देता है, जैसे कोरोनावायरस कर देता है। ईरान की अर्थव्यवस्था देश के वायरस की चपेट में आने से पहले ही प्रतिबंधों की मार से टूटी हुई थी। लॉकडाउन को लम्बा खींच पाना लगभग असंभव बना दिया गया, क्योंकि सरकार के सामने जीवन को आजीविकाओं के साथ संतुलित करने की मजबूरी थी, जिसमें जीवन का, प्रतिबंधों की मार के चलते नुकसान हुआ। न केवल ईरानियों को आय और विदेशों में अर्जित सम्पदा के अपने सार्वभौम साधनों-श्रोतों से वंचित कर दिया गया, बल्कि कोई सहायता भी नहीं उपलब्ध करायी गयी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से ईरान द्वारा पहली बार मांगे गए आपात ऋण को भी, यूएस दबाव के चलते अभी तक अंतिम मंज़ूरी नहीं मिल पाई है।
पिछले वर्ष के अंत में, अलेना दोहन, संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की स्पेशल रैपोर्टियर ने एकतरफा प्रतिबंधों को " सहायता, जिसमें दवाओं, मेडिकल उपकरणों, प्रोटेक्टिव किट्स, खाद्य पदार्थ और अन्य अनिवार्य वस्तुएं शामिल हैं, उपलब्ध करा सकने ( डिलीवरी) में प्रमुख अवरोध" के रूप में संदर्भित किया है। 2020 की गर्मियों में, जब ईरान में पेंडेमिक अपने चरम पर था, यूनाइटेड स्टेट्स ने अपने प्रतिबंधों को दोगुना कर दिया।
इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रतिबंध एक युद्ध कार्यवाही है - जिसे धनी और ताकतवर देश अपने घरेलू राजनीतिक लाभ के लिए दूसरी जगहों के मानव जीवन को दांव पर लगा कर मोल-तोल के हथियार के रूप में अंजाम देते हैं। और वे ऐसा किसी भी तरह की जवाबदेही से पूरी तरह मुक्त रह कर करते हैं।
निश्चित रूप से, पेंडेमिक के बहुत पहले से ही, आर्थिक प्रतिबंधों ने दुनिया भर में स्वास्थ्य तंत्रों और अर्थव्यवस्थाओं को तहस-नहस कर रखा था। यूएस बलाकेड ने छः दशकों से भी अधिक की अवधि में क्यूबा को $144 बिलियन अमेरिकी डॉलर की चोट पहुँचाई है।अकेले अप्रैल 2019 से मार्च 2020 के बीच, अमेरिका ने क्यूबा के खिलाफ 90 नयी प्रतिकूल आर्थिक कार्यवाहियाँ और उपाय किए जिससे क्यूबा को इन बारह महीनों में यूएस $5 बिलियन का नुकसान हुआ - पिछले वर्ष से यूएस $1बिलियन ज़्यादा।
इसके चलते खाद्य पदार्थ, ईंधन, और दवाओं का भयावह अभाव हुआ ; क्यूबा की जनता के लिए घंटों लम्बी क़तारें, जीवन की रोज़ की चक्की का हिस्सा बन चुकी हैं। यह सारा कुछ भयावह रूप से असहनीय हो गया, जब पेंडेमिक शुरू हुआ। क्यूबा को दुनिया से अलग-थलग काट देने के लिए लगभग पचास नयी प्रतिकूल कार्यवाहियाँ, उपाय और प्रतिबंध थोप दिए गए। ज्यादातर देशों की तरह, लॉकडाउन, जिसने क्यूबा के लोगों की जान बचा ली, क्यूबा की अर्थव्यवस्था को गर्त में डाल दिया, मगर ज्यादातर दूसरे देशों के विपरीत, क्यूबा के पास अंत में काम आ सकने वाला कोई क़र्ज़ दाता और कोई आपात फ़ंडिंग नहीं थी जो उसकी संकट में मदद कर सकती। क्यूबा की अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं तक पहुँच अमेरिका ने रोक रखी है।
यही त्रासद कहानी खुद को वेनेजुएला में दोहराती है, जहां यूएस प्रतिबंधों ने 2014 से देश को करीब युएस $120 बिलियन और एक लाख से अधिक जानों की चोट पहुँचाई है, क्योंकि अनिवार्य दवाओं और स्वास्थ्य रक्षा उपकरणों के आयात पर 2020 के पहले से ही रोक लगी हुई थी । पेंडेमिक के दौर में आईएमएफ ने वेनेजुएला को आपात कर्ज़ देने से इंकार कर दिया, और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने वेनेजुएला का सोना ज़ब्त कर लिया।
ईरान, क्यूबा और वेनेजुएला के साथ जो कुछ घटित हुआ, वह केवल इन्हीं देशों की बात नहीं है। सबसे पहले, ये प्रतिबंध बाहरी क्षेत्रीयताओं ( एक्स्ट्राटेरिटोरियल) के माध्यम से थोपे जाते हैं, जो तमाम अंतर्राष्ट्रीय मानकों और संधियों का उल्लंघन है। दूसरे क्यूबा पर प्रतिबंध हम सभी को चोट पहुंचाता है क्योंकि इन प्रतिबंधों के चलते पूरी दुनिया कैंसर, डायबेटीक फूट अल्सर, मेनेंजाइटिस बी, सोरायसिस, और अब कोविड-19 की विश्व-स्तरीय, और सस्ती दवाओं से वंचित हो रही है।
स्वास्थ्य के विरुद्ध युद्ध का अंत करने का अर्थ सूचना के विरुद्ध युद्ध का अंत करना है। पूरी पेंडेमिक अवधि में हमें यह कड़वी सीख मिली कि वैज्ञानिक सूचनायें भी राजनीतिकरण से मुक्त नहीं हैं, जिससे समूचे विश्व की आबादी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है, विशेषकर उनका, जो विद्यमान वैश्विक व्यवस्था तंत्र का प्रतिरोध कर रहे हैं। ग़लत सूचनाओं (डिसइनफॉरमेशन ) का यह अभियान गैर-पश्चिमी वैज्ञानिक प्रगति को कलंकित करता है, और खुद पश्चिम द्वारा विज्ञान पर एकाधिपत्य स्थापित करने के प्रयासों को छुपाता है।
पेंडेमिक के दौर में, क्यूबा के बायोटेक सेक्टर ने नए संकट के मुकाबले के लिए तैयार हो कर मरीजों के लिए बेहतरीन संभावनामय उपचार विकसित कर लिया और वर्तमान में विशेषकर कोविड-19 के लिए पाँच वैक्सीनों पर परीक्षण चल रहा है। इस क्षेत्र में भी अमेरिकी प्रतिबंधों ने क्यूबा को अपनी दवाओं के लिए रीजेंट्स और यहाँ तक कि व्यापक वैक्सीनेशन के लिए सिरिंज जैसे आधारभूत मेडिकल उपकरण हासिल करने के लिए भी संघर्ष करने पर विवश कर दिया।
इसी तरह, ईरान का बायो फार्मास्यूटिकल उद्योग जिन दवाओं का उत्पादन करता है वे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर स्टेट-ओफ़-आर्ट मानी जाती हैं, और वर्तमान में छह वैक्सीन संभावनाओं का परीक्षण चल रहा है। मेडिकल और फ़ार्मास्यूटिकल व्यापार को बाधित- संकुचित करना न केवल ईरानियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को बर्बाद कर देगा, बल्कि यह मध्य और पश्चिमी एशिया की पड़ोसी आबादियों की स्वास्थ्य सुरक्षा को भी कमजोर करेगा,जो पश्चिम से आयात पर निर्भर होने के बजाय, ईरान की क्षेत्रीय क्षमताओं का लाभ उठा सकती थीं।
ईरान के सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक उल्लेखनीय उपलब्धि, जो वर्तमान पेंडेमिक के लिए विशेष महत्वपूर्ण और उपयोगी है, उसका एक सदी लम्बा वैक्सीन उत्पादन और वैक्सीनेशन कवरेज का अनुभव है। ईरान की सबसे हाल की सफलता चेचक (मीजल्स) का उच्छेद है।यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसे अभी दुनिया के बहुत से हिस्सों में नहीं हासिल किया जा सका है। यहाँ तक कि यूरोप में अभी 2019 तक में इसका प्रकोप फैला - उसी साल, जिसमें ईरान इसके समूल उच्छेद में सफल हुआ था। क्यूबा ने 1988 में ही विश्व में सबसे पहले मेनिनजाइटिस बी की वैक्सीन विकसित कर ली थी, मगर ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा को अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य बाल्यावस्था इम्यूनाइजेशन कार्यक्रम के अंतर्गत इसी तरह की वैक्सीन लागू कर पाने में तीस साल लगे।
इस पेंडेमिक में ईरान केवल पश्चिम का ही मुंह नहीं देख रहा है : वह रूस से आयात कर रहा है, क्यूबा के साथ मिल कर काम कर रहा है, COVAX के माध्यम से वैक्सीन हासिल कर रहा है, और उनका भारी पैमाने पर घरेलू उत्पादन कर रहा है। वास्तव में सुप्रीम नेता ने पश्चिम के प्रतिबंधों पर यूएस और यूके जैसे अपने भू-राजनीतिक (जियोपोलिटिकल) विरोधियों द्वारा उत्पादित वैक्सीनों के आयात पर प्रतिबंध के रूप में प्रतिक्रिया दी है। इस निर्णय के खिलाफ जैसे दुनिया भर में भर्त्सना की होड़ मच गई है। पश्चिम के प्रहारों को मना करना कोई अपराध नहीं है, मगर पश्चिम द्वारा वैक्सीनों की जमाख़ोरी और जेनेरिक उत्पादन बढ़ाये जाने के लिए उन्हें इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPRs) से अवमुक्त किए जाने ( जैसा कि भारत और दक्षिण अफ्रीका ने अनुरोध किया था) से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को रोकना निश्चित रूप से स्वास्थ्य अपराध है। वायरस ने एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी है, कोई भी सुरक्षित नहीं है, जब तक कि हर कोई सुरक्षित नहीं है।
वैश्विक स्वास्थ्य संकट के जवाब में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अनिवार्य रूप से क्या मांग करनी चाहिए, यह हमें क्यूबा से सीखना चाहिए। घरेलू मोर्चे पर संसाधनों की भारी कमी से जूझने और कोविड-19 के खिलाफ भारी पैमाने पर व्यापक गोलबंदी करने की व्यस्तता में भी क्यूबा ने यूरोप सहित दुनिया भर में चालीस देशों के 1 करोड़ 26 लाख कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए रोग नियंत्रण और महामारी प्रत्युत्तर (डिजास्टर रेस्पॉन्स) मेडिकल विशेषज्ञों के 57 ब्रिगेड भेजे। उसका पहला योगदान मार्च 2020 में इटली के लोम्बार्डी में था जो उस समय पेंडेमिक का नाभि केंद्र बना हुआ था। एकजुटता की यह कार्यवाही क्यूबा की मेडिकल अंतर्राष्ट्रीयता के अभिभूत कर देने वाले रिकार्ड की पूरी संगति में थी। 2020 से पहले, चार लाख क्यूबाइ मेडिकल विशेषज्ञ 1960 से 164 देशों में अपनी स्वास्थ्य संरक्षा सेवाएं दे चुके थे जो उन देशों और मरीज़ों के लिए निःशुल्क थीं।
राजनीतिज्ञों और मुख्यधारा मीडिया द्वारा इस पर शायद ही कभी कुछ कहा गया हो, इस सत्य के बावजूद कि इन प्रयासों ने समूचे वैश्विक दक्षिण में अविस्मरणीय प्रभाव डाला है। इन प्रयासों से वस्तुतः दसियों लाख जीवनों की रक्षा हुई है और करोड़ों जीवनों में उल्लेखनीय सुधार आया है। 2014 तक, क्यूबा के परामर्श चिकित्सक विदेशों में 120 करोड़ परामर्श चिकित्सा कर चुके थे, 22 लाख शिशुओं का जन्म करा चुके थे, और 80 लाख सर्जरी कर चुके थे। पिछले छह दशकों में क्यूबा ने वैश्विक दक्षिण के दसियों हज़ार छात्रों को मुफ्त मेडिकल शिक्षण- प्रशिक्षण दिया है।1990 से, हवाना के लैटिन अमेरिकन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन से 30,000 विदेशी छात्रों ने ग्रेजुएशन किया है ; इनमे से काफ़ी बड़ी संख्या ने निःशुल्क शिक्षा ली है। यह उस जन कल्याणकारी विकास मॉडल का प्रतिफल है
जो प्रतिस्पर्धा के स्थान पर सहभागिता और समन्वय को प्रोत्साहित करता है और जिसमें अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता को मानवता की सर्वोच्च अभिव्यक्ति के रूप में मान्यता दी जाती है। ये सिद्धांत क्यूबा के शिक्षा व स्वास्थ्य संरक्षण व्यवस्था में गहरे अंतर्निहित हैं।
अब वैश्विक दक्षिण कोविड-19 वैक्सीन के लिए क्यूबा की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है। वे अपने अनुभवों से जानते हैं कि क्यूबा अपने जीवन रक्षक आविष्कारों को साझा करने में कभी संकोच नहीं करेगा। वे यह भी जानते हैं कि क्यूबा की दवाएं उनके बजट संसाधनों के अंदर ही होंगी, और ऐसी किसी भी शर्त के बिना उपलब्ध होंगी, जैसी अक्सर बड़े फार्मा विकासशील देशों पर लादते रहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि क्यूबाई जीवन रक्षा के उद्येश्य से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहभागिता (कोलैबोरेट) करने में कभी पीछे नहीं हटेंगे, जैसा कि वे अभी ईरान के साथ कर रहे हैं ( क्यूबा की कोविड-19 वैक्सीन सोबेराना 2 की एक लाख खुराक पहले ही ईरान को भेजी जा चुकी है, जो क्यूबा में फ़ेज़ III क्लिनिकल परीक्षण में है )।यह वह सीख है जिसे शेष दुनिया को अवश्य ही सीखना और सुदृढ़ करना चाहिए।
प्रतिबंध - जिसमें साम्राज्यवादी राष्ट्र दुनिया के कुछ हिस्सों के लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को तुच्छ- मिटाए जाने योग्य मानते हैं - हत्या है। ये ऐसी किसी भी दुनिया के मूल आधार पर कुठाराघात है, जहां हम सब एक दूसरे के साथ रहना, देखभाल करना और प्यार करना चाहते हैं। प्रतिबंधों को समाप्त किया जाना ही चाहिए - न केवल शिकार-लक्षित आबादियों के जीवन की रक्षा के लिए, बल्कि लक्षित राष्ट्रों की क्षमताओं के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य को सुदृढ़ किए जाने के लिए भी।
हेलेन याफे ग्लास्गो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र व सामाजिक इतिहास की लेक्चरर और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई सेंटर की विज़िटिंग फ़ेलो हैं।वह येल यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा पिछले वर्ष प्रकाशित पुस्तक " वी आर क्यूबा ! हाउ अ रिवोल्यूशनरी पीपल हैव सर्वाइव्ड इन अ पोस्ट-सोवियत वर्ल्ड" की लेखिका है।
वीरा अमेली आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की डीफ़िल की छात्रा है। उनका शोध मेडिकल और समाज विज्ञान के अंतर्मेलन (इंटरसेक्शन) पर है, और वह वर्तमान में ईरान और वृहत्तर मध्य पूर्व व उत्तरी अफ्रीका में एचआईवी के संदर्भ पर केंद्रीकरण कर रही हैं।